Wednesday, April 21, 2010

ब्‍लागवाणी चिटठाजगत से अनुरोघ नहीं अब उन्‍हें हुक्‍म देने का समय आ गया है

बहुत समय से देख रहे हैं यह अग्रीगेटर अपनी जेब शिकायतों से  भरने में लगे हुये हैं. सबसे सम्‍मानित आदरणीय ब्‍लागर जी.के. अवधिया जी की भी नहीं सुनते उनको यह दो शब्‍द जवाब में नहीं बतासके कि ब्लोगवाणी के द्वारा दुर्भाव का जहर उगलने वाले ब्लोग्स की सदस्यता बनाये रखने का क्या औचित्य है. हमारे मशाल भाई दूसरे ब्‍लागर भाई बार-बार आवाज उठा चुके हैं, इस मामले में हम शहजादी फिरदौस पर हम जितना फखर करें कम है उसने तो इस आन्‍दोलन में जान डाल दी अब इन अग्रीगे्टर की खेर नहीं खास तौर से ब्‍लागवाणी की इसके विरूद्ध फिरदौस की बात को आगे बढाते हुये काव्य मंजूषा की और से ठोस पहल की गयी है वह सीधे इसी(ब्‍लागवाणी) के बहिष्‍कार को कहती हैं, ठीक कहती हैं यही मेरे शब्‍द समझे जायें

उनके शब्‍दों में :
"या तो ब्लॉग वाणी इनपर कार्यवाही करे नहीं तो ब्लॉग वाणी का ही बहिष्कार होना चाहिए....आखिर क्या वजह है कि ब्लॉग वाणी इन ब्लॉग पर प्रतिबन्ध नहीं लगा रही है....क्या तकनीकि तौर पर वो कुछ नहीं कर पा रहे हैं या फिर उनको इससे आर्थिक नुक्सान पहुँच रहा है या फिर वो करना ही नहीं चाहते हैं....
हम कारण जानना चाहते हैं...."

मित्रो अब यह समय अनुरोध का नहीं आदेश या बहिष्‍कार का है.
तुम मुझे सहयोग दो मैं तुम्‍हारी स्‍वच्‍छ इच्‍छाओं का सम्‍मान करूंगा.

Tuesday, March 2, 2010

मैली हो रही गंगा को कैसे बचाया जाये

देहरादून : भारतीय जनमानस की जीवन रेखा मानी जानेवाली गंगा अपने घर में ही मैली होने के साथ देश के राजनेताओं की गंदी राजनीति की शिकार हो रही है, गंगा-जमुना और देवालयों के कारण सदियों से उत्तराखंड को देवभूमि की मान्यता प्राप्त है। भगवान विष्णु के पद से निकल कर भगवान शिव की हिमालयी जटाओं में विचरण करनेवाली गंगा को सदियों से उनकी अविरल धवल पावन धाराओं के कारण पावनता-पवित्रता का पर्याय माना जाता रहा है।

अपने हिमालयी क्षेत्र में ही इस पावन गंगा के मैली होने की सच्चाई ने देश की सौ करोड़ से अधिक जनता के मन को विचलित कर के रख दिया है। मैदानी इलाके में तो गंगा पहले ही मैली हो चुकी थी, अब ऊपर अपने घर में यानी उद्गम के पास भी उसका जल पीने के योग्य नहीं रहा, यह भी दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि २४ वर्षों से जब से गंगा ऐक्शन प्लान लाया गया तब से गंगा के मैली होने का क्रम बढ़ा है। इन २४ वर्षों में उन सभी हानिकारक तत्वों की भरमार हो चुकी है,जो उसकी गुणवत्ता को कम कर रहे हैं। गंदगी को दर्शानेवाले सूचक कोलीफार्म, फिएकल कोलाफॉर्म और ई कोलाई की मात्रा समय दर समय बढ़ती जा रही है। १९८५ के दौरान जोशीमठ, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग, श्रीनगर,

उत्तरकाशीी, टिहरी, देवप्रयाग, त्र+षिकेश और हरिद्वार जैसे पड़ावों पर गंगाजल के नमूने लिये गये थे, जिनमें पानी के भौतिकी, रासायनिक और बायोलाजिकल गुणों की जांच की गयी थी, जिनमें प्रदूषणों के सूचकों की संख्या ज्यादा नहीं थी। लेकिन २००७-०८ के आते ही प्रदूषण की मात्रा दर्शनेवाले सूचकों की संख्या में खासा इज़ाफा किया जा चुका है। रासायनिक गुणों के तहत बायोलॉजिकल आक्सीजन डिमांड की मात्रा १९९५ के मुकाबले ढाई गुना तक कम हो चुकी है। टोटल डिजॉल्ट सालिस्ड और सस्पेंडेड स्लालिड्स की मात्रा में भी खासा इज़ाफ़ा हो चुका है। २००७-०८ के दौरान गोमुख और बदरीनाथ की तुलना में हरिद्वार में ई कोलाई की मात्रा भी बढ़ चुकी है, जिसे लगभग पांच गुना अधिक पाया गया।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के डिपार्टमेंट आफ जूलाजी के किये गये सर्वे में गंगा के मैली होने के साफ संकेत मिले है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी पीके जोशी का मानना है कि २००७ से अबतक के अध्ययन में गंगा में फेकल कोलीफार्म की मात्रा मानक से कहीं ज़्यादा है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह खबर पूरे देश की आस्था को भारी चोट पहुंचानेवाला सिद्ध हो रहा है। देश में चारों ओर बस एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या देश की करोड़ों जनमानस की आस्था और विश्वास की प्रतीक गंगा को नवजीवन देने का कोई उपाय शेष नहीं बचा है!

Monday, January 4, 2010

क्या 'हिन्दू शब्द भारत के लिए समस्या नहीं बन गया है?

आज हम 'हिन्दू शब्द की कितनी ही उदात्त व्याख्या क्यों न कर लें, लेकिन व्यवहार में यह एक संकीर्ण धार्मिक समुदाय का प्रतीक बन गया है। राजनीति में हिन्दू राष्ट्रवाद पूरी तरह पराजित हो चुका है। सामाजिक स्तर पर भी यह भारत के अनेक धार्मिक समुदायों में से केवल एक रह गया है। कहने को इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय माना जाताहै, लेकिन वास्तव में कहीं इसकी ठोस पहचान नहीं रह गयी है। सर्वोच्च न्यायालय तक की राय में हिन्दू, हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, लेकिन हमारे संविधान में यह एक रिलीजन के रूप में दर्ज है। रिलीजन के रूप में परिभाषित होने के कारण भारत जैसा परम्परा से ही सेकुलर राष्ट्र उसके साथ अपनी पहचान नहीं जोडऩा चाहता। सवाल है तो फिर हम विदेशियों द्वारा दिये गये इस शब्द को क्यों अपने गले में लटकाए हुए हैं ? हम क्यों नहीं इसे तोड़कर फेंक देते और भारत व भारती की अपनी पुरानी पहचान वापस ले आते।

हिन्दू धर्म को सामान्यतया दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि दुनिया में ईसाई व इस्लाम के बाद हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन क्या वास्तव में हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म है? दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. डी.एन. डबरा का कहना है कि 'हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे नया धर्म है। हो सकता है कि कुछ धर्म इससे भी नये हों, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि हिन्दू धर्म दुनिया के नवीनतम धर्मों में से एक है। यह एक ऐसा धर्म है, जिसे अंग्रेजों ने पैदा किया। डी.एन. डबरा साहब की यह बात बहुत हद तक सही है, क्योंकि 19वीं श्ताब्दी के पहले 'हिन्दू शब्द कभी भी धर्म के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ। यद्यपि यह शब्द 12वीं, 13वीं शताब्दी में भारत आ चुका था, लेकिन 19वीं शताब्दी के पहले तक यह भारत भूमि के निवासियों का द्योतक था। इस शब्द का व्यापक प्रयोग दिल्ली में सल्तनत काल की शुरुआत से शुरू होता है, लेकिन यह केवल बाहर से आये मुसलमानों से भिन्न देशी निवासियों की पहचान के लिए प्रयुक्त होता था। कश्मीरी तथा दक्षिण भारत के साहित्य में यह १३२३ ई. से मिलने लगता है। 14वीं शताब्दी के विजयनगर के शासकों को 'हिन्दूराय सुरतरण यानी 'हिन्दू राजाओं में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, लेकिन यहां हिन्दू राजा से आशय देशी राजा था। उनका मुकाबला बीजापुर के सुल्तान से रहता था। सुल्तान का अर्थ था विदेशी मुस्लिम राजा। 17वीं शताब्दी की तेलुगु रचना 'रायवचकमु' में विदेशी मुस्लिम शासकों को क्रूर व अन्यायी बताते हुए निंदा की गयी है। 1455ई. में कवि पद्मनाभ ने जालेर के चौहानों की प्रशस्ति में एक ग्रंथ लिखा 'कन्हदड़े प्रबंध', इसमें राजा को हिन्दू कहकर प्रशंसा की गयी है, लेकिन यह प्रशंसा देशी राजा के लिए है, हिन्दू धर्मानुयायी के लिए नहीं। महाराण प्रताप के प्रशस्तिकारों ने उस समय उन्हें 'हिन्दू कुल कमल दिवाकर कहा है, किन्तु यहां भी यह हिन्दू, भारतीयता का पर्याय है। शिवाजी के शासन को 'हिन्दवी स्वराज्य'कहा जाता था किन्तुलेकिन उसका अर्थ भी 'स्वदेशी शासन' था, कोई हिन्दू धर्म का शासन नहीं।
डी.एन. डबरा साहब ने ही बताया है कि अंग्रेजों ने भारत में जब मतगणना की शुरुआत की, तो उनके सामने इस देश की जनसंख्या के वर्गीकरण की समस्या आयी। यहां असंख्य जाति व समुदाय थे। धार्मिक संप्रदायों की भी कमी न थी। तो जनगणना अधिकारियों ने सारे गैर मुस्लिम समुदायों का एक वर्ग बना दिया और उसे हिन्दू नाम दे दिया। यह मुस्लिमों द्वारा पहले से तय की गयी विभाजन लाइन को आगे बढ़ाने जैसा था, लेकिन यहां भी धर्मांतरित मुसलमानों को लेकर एक समस्या थी। उनके लिए 'हिन्दू-मोहम्मडन (मुस्लिम हिन्दू) शब्द का प्रयोग किया गया। यह प्रयोग करीब 1911 की जनगणना तक चला।
धीरे-धीरे यह शब्द भारतीय हिन्दुओं के लिए रूढ़ हो गया और More More More
Spl. Thanks राधेश्याम शुक्ल