Tuesday, March 2, 2010

मैली हो रही गंगा को कैसे बचाया जाये

देहरादून : भारतीय जनमानस की जीवन रेखा मानी जानेवाली गंगा अपने घर में ही मैली होने के साथ देश के राजनेताओं की गंदी राजनीति की शिकार हो रही है, गंगा-जमुना और देवालयों के कारण सदियों से उत्तराखंड को देवभूमि की मान्यता प्राप्त है। भगवान विष्णु के पद से निकल कर भगवान शिव की हिमालयी जटाओं में विचरण करनेवाली गंगा को सदियों से उनकी अविरल धवल पावन धाराओं के कारण पावनता-पवित्रता का पर्याय माना जाता रहा है।

अपने हिमालयी क्षेत्र में ही इस पावन गंगा के मैली होने की सच्चाई ने देश की सौ करोड़ से अधिक जनता के मन को विचलित कर के रख दिया है। मैदानी इलाके में तो गंगा पहले ही मैली हो चुकी थी, अब ऊपर अपने घर में यानी उद्गम के पास भी उसका जल पीने के योग्य नहीं रहा, यह भी दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि २४ वर्षों से जब से गंगा ऐक्शन प्लान लाया गया तब से गंगा के मैली होने का क्रम बढ़ा है। इन २४ वर्षों में उन सभी हानिकारक तत्वों की भरमार हो चुकी है,जो उसकी गुणवत्ता को कम कर रहे हैं। गंदगी को दर्शानेवाले सूचक कोलीफार्म, फिएकल कोलाफॉर्म और ई कोलाई की मात्रा समय दर समय बढ़ती जा रही है। १९८५ के दौरान जोशीमठ, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग, श्रीनगर,

उत्तरकाशीी, टिहरी, देवप्रयाग, त्र+षिकेश और हरिद्वार जैसे पड़ावों पर गंगाजल के नमूने लिये गये थे, जिनमें पानी के भौतिकी, रासायनिक और बायोलाजिकल गुणों की जांच की गयी थी, जिनमें प्रदूषणों के सूचकों की संख्या ज्यादा नहीं थी। लेकिन २००७-०८ के आते ही प्रदूषण की मात्रा दर्शनेवाले सूचकों की संख्या में खासा इज़ाफा किया जा चुका है। रासायनिक गुणों के तहत बायोलॉजिकल आक्सीजन डिमांड की मात्रा १९९५ के मुकाबले ढाई गुना तक कम हो चुकी है। टोटल डिजॉल्ट सालिस्ड और सस्पेंडेड स्लालिड्स की मात्रा में भी खासा इज़ाफ़ा हो चुका है। २००७-०८ के दौरान गोमुख और बदरीनाथ की तुलना में हरिद्वार में ई कोलाई की मात्रा भी बढ़ चुकी है, जिसे लगभग पांच गुना अधिक पाया गया।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के डिपार्टमेंट आफ जूलाजी के किये गये सर्वे में गंगा के मैली होने के साफ संकेत मिले है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी पीके जोशी का मानना है कि २००७ से अबतक के अध्ययन में गंगा में फेकल कोलीफार्म की मात्रा मानक से कहीं ज़्यादा है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह खबर पूरे देश की आस्था को भारी चोट पहुंचानेवाला सिद्ध हो रहा है। देश में चारों ओर बस एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या देश की करोड़ों जनमानस की आस्था और विश्वास की प्रतीक गंगा को नवजीवन देने का कोई उपाय शेष नहीं बचा है!