आज हम 'हिन्दू शब्द की कितनी ही उदात्त व्याख्या क्यों न कर लें, लेकिन व्यवहार में यह एक संकीर्ण धार्मिक समुदाय का प्रतीक बन गया है। राजनीति में हिन्दू राष्ट्रवाद पूरी तरह पराजित हो चुका है। सामाजिक स्तर पर भी यह भारत के अनेक धार्मिक समुदायों में से केवल एक रह गया है। कहने को इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय माना जाताहै, लेकिन वास्तव में कहीं इसकी ठोस पहचान नहीं रह गयी है। सर्वोच्च न्यायालय तक की राय में हिन्दू, हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, लेकिन हमारे संविधान में यह एक रिलीजन के रूप में दर्ज है। रिलीजन के रूप में परिभाषित होने के कारण भारत जैसा परम्परा से ही सेकुलर राष्ट्र उसके साथ अपनी पहचान नहीं जोडऩा चाहता। सवाल है तो फिर हम विदेशियों द्वारा दिये गये इस शब्द को क्यों अपने गले में लटकाए हुए हैं ? हम क्यों नहीं इसे तोड़कर फेंक देते और भारत व भारती की अपनी पुरानी पहचान वापस ले आते।
हिन्दू धर्म को सामान्यतया दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि दुनिया में ईसाई व इस्लाम के बाद हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन क्या वास्तव में हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म है? दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. डी.एन. डबरा का कहना है कि 'हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे नया धर्म है। हो सकता है कि कुछ धर्म इससे भी नये हों, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि हिन्दू धर्म दुनिया के नवीनतम धर्मों में से एक है। यह एक ऐसा धर्म है, जिसे अंग्रेजों ने पैदा किया। डी.एन. डबरा साहब की यह बात बहुत हद तक सही है, क्योंकि 19वीं श्ताब्दी के पहले 'हिन्दू शब्द कभी भी धर्म के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ। यद्यपि यह शब्द 12वीं, 13वीं शताब्दी में भारत आ चुका था, लेकिन 19वीं शताब्दी के पहले तक यह भारत भूमि के निवासियों का द्योतक था। इस शब्द का व्यापक प्रयोग दिल्ली में सल्तनत काल की शुरुआत से शुरू होता है, लेकिन यह केवल बाहर से आये मुसलमानों से भिन्न देशी निवासियों की पहचान के लिए प्रयुक्त होता था। कश्मीरी तथा दक्षिण भारत के साहित्य में यह १३२३ ई. से मिलने लगता है। 14वीं शताब्दी के विजयनगर के शासकों को 'हिन्दूराय सुरतरण यानी 'हिन्दू राजाओं में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, लेकिन यहां हिन्दू राजा से आशय देशी राजा था। उनका मुकाबला बीजापुर के सुल्तान से रहता था। सुल्तान का अर्थ था विदेशी मुस्लिम राजा। 17वीं शताब्दी की तेलुगु रचना 'रायवचकमु' में विदेशी मुस्लिम शासकों को क्रूर व अन्यायी बताते हुए निंदा की गयी है। 1455ई. में कवि पद्मनाभ ने जालेर के चौहानों की प्रशस्ति में एक ग्रंथ लिखा 'कन्हदड़े प्रबंध', इसमें राजा को हिन्दू कहकर प्रशंसा की गयी है, लेकिन यह प्रशंसा देशी राजा के लिए है, हिन्दू धर्मानुयायी के लिए नहीं। महाराण प्रताप के प्रशस्तिकारों ने उस समय उन्हें 'हिन्दू कुल कमल दिवाकर कहा है, किन्तु यहां भी यह हिन्दू, भारतीयता का पर्याय है। शिवाजी के शासन को 'हिन्दवी स्वराज्य'कहा जाता था किन्तुलेकिन उसका अर्थ भी 'स्वदेशी शासन' था, कोई हिन्दू धर्म का शासन नहीं।
डी.एन. डबरा साहब ने ही बताया है कि अंग्रेजों ने भारत में जब मतगणना की शुरुआत की, तो उनके सामने इस देश की जनसंख्या के वर्गीकरण की समस्या आयी। यहां असंख्य जाति व समुदाय थे। धार्मिक संप्रदायों की भी कमी न थी। तो जनगणना अधिकारियों ने सारे गैर मुस्लिम समुदायों का एक वर्ग बना दिया और उसे हिन्दू नाम दे दिया। यह मुस्लिमों द्वारा पहले से तय की गयी विभाजन लाइन को आगे बढ़ाने जैसा था, लेकिन यहां भी धर्मांतरित मुसलमानों को लेकर एक समस्या थी। उनके लिए 'हिन्दू-मोहम्मडन (मुस्लिम हिन्दू) शब्द का प्रयोग किया गया। यह प्रयोग करीब 1911 की जनगणना तक चला।
धीरे-धीरे यह शब्द भारतीय हिन्दुओं के लिए रूढ़ हो गया और More More More
Spl. Thanks राधेश्याम शुक्ल
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7 years ago
4 comments:
Bahut khub likha hai. jankar khusee hue.
बहुत बढ़िया आलेख है। धन्यवाद।
चलिए विदेशी शासक ही सही उन्हों ने एक नाम दे कर एक तो किया भारत के मूल निवासियों को।
जानकारी के लिए आभार।
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